आर्य समाज विवाह प्रेमी जोड़ों या परिवारजनों की इच्छा के खिलाफ जाकर लव मैरिज करने वालों के बीच लंबे समाय से लोकप्रिय रहा है। बहुत से लोग जो सादगीपूर्वक बिना ताम-झाम के शादी करना चाहते हैं चाहे वो अरेंज मैरिज हो या प्रेम विवाह वे आर्य समाज पद्धति को अपना रहे हैं। आर्य समाज विवाह कानूनी रूप से वैध माना जाता है और एक बार विवाह होने के पश्चात वर-वधू के पति-पत्नी के अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। अंतरजातीय विवाह करने वालों के लिये भी ये एक अच्छा तरीका है क्योंकि अक्सर रूढि़वादी हिंदू परिवारों में अक्सर वर या वधू का दूसरी जाति का होना विरोध का कारण बनता है और उत्तर भारत में यह समस्या ज्यादा विकराल है हालांकि अब ट्रेंड कुछ बदल भी रहा है। वे लोग जो हिन्दू हैं और परिवारजनों के विरोध के कारण सार्वजनिक रूप से शादी नहीं कर सकते या उनको कोई खतरा है उनके लिए यह विवाह-पद्धति एक अच्छा विकल्प है। इस विवाह के लिए शर्तें वहीं हैं जो एक हिन्दू विवाह के लिए आवश्यक हैं।
हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 5 में विवाह के लिए कुछ शर्तें दी गई हैं जिन्हें पूरा करने पर ही एक विवाह Valid या Legal माना जाता है। जिनमें लड़के का 21 वर्ष और लड़की का 18 वर्ष की आयु का होना आवश्यक है, इसके अलावा अन्य शर्तें जो कि इस अधिनियम में दी गई हैं उन्हें पूरा करना आवश्यक है। आर्य समाज पद्धति से शादी करने वालों को ये शर्तें पूरा करना आवश्यक है साथ ही इसे वैध बनाने के लिए जिन कर्मकाण्डों अर्थात Rituals की जरूरत है वे भी एक विवाह में की जानी आवश्यक हैं। आर्य समाज उपरोक्त एक्ट के सभी मापदण्डों के अनुसार ही शादी संपन्न करवाता है इसीलिए इसे एक Valid Hindu Marriage माना जाता है और Arya Marriage Validation Act 1937 की धारा 19 भी इसे वैधता प्रदान करती है। विवाह सम्पन्न होने पर आर्य समाज द्वारा विवाह का सर्टिफिकेट भी दिया जाता है।
आर्य समाज मंदिर वालों की भी अपनी प्रक्रिया और नियम हैं जिनको पूरा करने पर ही वे किसी शादी समारोह को संपन्न करने की अनुमति देते हैं। आजकल इनके द्वारा जिन दस्तावेजों या डॉक्यूमेंट्स की शादी से पहले मांग की जाती है वो इस प्रकार हैं-
1 आयु का प्रमाणपत्र विवाह के इच्छुक पक्षकारों का जिससे ये तय किया जा सके कि लड़के ने 21 वर्ष और लड़की ने 18 वर्ष की उमर पूरी कर ली है। ये मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, आधार कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र कुछ भी हो सकता है।
2- वर-वधू दोनों के द्वारा दिया गया एफिडेविट या शपथपत्र जिसमें उनकी आयु, उनका कोई जीवित पति या पत्नी ना होना और अन्य जानकारियां होंगी।
3- दो साक्षी जिनके पास पहचान पत्र होना आवश्यक है।
4- शपथपत्र में यह भी जानकारी देना आवश्यक है कि दोनों पक्ष किसी सपिण्ड नातेदारी (Prohibited Degree of Relationship) के अंतर्गत नहीं आते ।
5- यदि वे तलाकशुदा हैं तो संबंधित डिक्री या ऑर्डर की कॉपी और यदि उनके जीवनसाथी की मृत्यु हो चुकी है तो डेथ सर्टिफिकेट
आर्य समाज मंदिर में इस प्रकार की गई शादियों का पूरा रिकॉर्ड भी रखा जाता है। ऐसा विवाह कानून की नजर में पूरी तरह मान्य है और यदि इसे चुनौती दी जाती है तो प्रमाणपत्र, साक्षियों और मंदिर के रिकॉर्ड से इसे आसानी से साबित किया जा सकता है।
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