हाल ही में अखबार में एक खबर देखी कि एक हॉलीवुड के एक सेलेब्रिटी कपल ने अलगाव होने के बावजूद भी अलग होने के बजाय एक ही घर में रहने का विकल्प इसलिए चुना कि उनके बच्चे पर इसका बुरा असर पड़ता. ऐसी परिस्थितियों में लोग जहाँ जल्दबाज़ी में कुछ गलत कदम उठा लेते हैं जो उनके लिये तो खराब होता ही है, बच्चों को इससे कहीं ज्यादा बुरे परिणाम भुगतने पड़ते हैं और तलाक के बाद कस्टडी के नाम पर चल रही खींचतान में उसका बचपन पिसता रहता है।
हमारे यहां जहां एक तरफ संयुक्त परिवार की परंपरा धीरे धीरे खत्म होती जा रही है वहीं एकल परिवारों में भी पति पत्नी के रिश्तों की अनबन बच्चों पर मनोवैज्ञानिक रूप से बुरा असर डाल रही है। पति पत्नी का व्यस्त और कामकाजी होना और बच्चों के साथ कम समय बिता पाना उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए कतई अच्छा नहीं हैं साथ ही घर के बुजुर्गों का होना भी बच्चे के समुचित विकास के लिए जरूरी है। ऐसे परिवार जिनमें बच्चे को दूसरे सदस्यों का साथ और सहयोग नहीं मिलता वे भावनात्मक समस्याओं से जीवनभर जूझते हैं। अब अंंदाजा लगाएं कि यदि पति पत्नी किसी कारण से अलग होने का फैसला कर लें तब स्थिति कितनी विकट होगी। हालांकि कई बार स्थितियां ऐसी हो जाती हैं जहां अलग होने के अलावा कोई विकल्प बचता नहीं। पर फिर भी बहुत सारे मामलों में ऐसी स्थितियों से बचा जा सकता है। यदि माता पिता ऐसा कर पाते हैं तो उनके बच्चे अपने जीवन में होने वाली निम्न समस्याओं से बचे रह सकते हैं—
*खुद को हमेशा असुरक्षित महसूस करना
*अकारण ही आक्रामक और जिद्दी होना
*छोटी छोटी बातों पर निर्णय ना ले पाना
*आसानी से किसी से सामंजस्य ना बिठा पाना
*अपनी अभिरूचियों का विकास ठीक से ना कर पाना
*उनके स्वयं के जीवन में जीवनसाथी के तालमेल ना बिठा पाना
*परिवार टूटने की दशा में समाज में भी खुद को अलग थलग महसूस करना
साथ ही और भी कई प्रकार की साइकोलॉजिकल डिसआॅर्डर से इन बच्चों को जूझना पड़ सकता है।
तो विवाह विच्छेद के बढ़ते मामले किस तरह हमारे बच्चों के जीवन की राह को मुश्किल बना रहे हैं। साथ ही मां बाप में बच्चों के संरक्षण को लेकर भी कानूनी लड़ाई चलती है। जिसमें बच्चे के अच्छे भविष्य को लेकर उनका अपना अपना नजरिया होता है पर बच्चे के हित के लिए दोनों अलग अलग नहीं साथ मिलकर सोचे तो नतीजा पॉजिटिव हो सकता है।
वैसे अच्छी बात ये है कि हमारे विधि आयोग ने इस बात को ध्यान में रखकर सरकार को पिछले साल सौंपी अपनी रिपोर्ट में तलाक की स्थिति में बच्चों की Joint Custodyकी सिफारिश की है ताकि संयुक्त रूप से पति पत्नी दोनों को ही बच्चों की देखभाल करने का अधिकार मिल सकेऔर इसके लिए इससे जुड़े कानूनों Hindu Minority and Guardianship Act 1956 और Guardianship and Wards Act 1890 में बदलाव किये जाने की जरूरत पर जोर दिया है जिससे बच्चे की परवरिश पर कोई विपरीत प्रभाव ना पड़े।
खैर कानून हमारे
बच्चों के बारे में सोचे उससे पहले हमें ही थोड़ा संयम रखकर सोचना चाहिए कि मतभेद
होने के बावजूद बच्चों की भलाई के लिए ही सही हमारा साथ रहना उनके लिए कितना जरूरी
है। अक्सर समय के गुजरने के साथ साथ मतभेद भी धुंधले पड़ जाते हैं और जल्दबाजी में
लिये गये निर्णय बाद में बेवकूफी भरे लगते हैं।
photo credit : jgllaw.com
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